दक्षिण अफ़्रीका के सत्याग्रह का इतिहास : गांधी जी
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चुनौतियाँ अगर समस्या लेकर आती है तो साथ में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा भी निर्मित करती है । संकट से एकाएक बहुत कुछ अव्यवस्थित हो जाता है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्ही हालत में नवीनता का सृजन भी होता है । आज भारत सहित विश्व के अनेक देश जीवन और मृत्यु के मकड़जाल में ऐसे उलझ गए है कि सरकारें सभी गतिविधियों को त्यागकर जनजीवन को सामान्य करने में लगी है , जिसके लिए उन्हें बधाई भी दी जानी चाहिए लेकिन मेरे मस्तिष्क में एक नया विमर्श ये उत्पन्न हो रहा है कि जिस तरह आज एक चुनौती ने हमें इतना विवश कर दिया है कि 2020 तक का सारा विकास धरा का धरा रह जा रहा है और हम घरों में क़ैद होने को बाध्य है । मैं अपनी चर्चा को यही से आगे लेके जाना चाहता हूँ ।
आज कुछ संगठन और राजनीतिक दल निरंतर पूर्व की सरकारों को ये कहते नहीं थकते कि इसमें ये कमियाँ है तो वो प्रधानमंत्री ऐसा था तो वो वैसा था यहाँ तक कि कुछ प्रधानमंत्रियों का नाम लेने से भी परहेज़ नहीं करते है । हद तो तब हो जाती है जब गांधी जी की कार्यशैली को भी बिना पढ़े बिना समझे झूठ की मंडी सज़ा दी जाती है । गांधी जी असाधारण व्यक्तित्व थे ये अब निसंदेह हो चुका है लेकिन ये असाधारण महामानव उस ऊँचाई तक कैसे पहुँचा विशेषकर जब दुनिया प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर से गुज़र रही हो । हम स्वयं ग़ुलामी जैसे विराट बंधन में निरुत्साहित परिवेश में जी रहे थे ।इन्हीं कुछ विशेषताओं को आधार बना कर यूपीएससी/पीसीएस में यदा कदा प्रश्न भी पूछे जाते है । ऐसे कई गूढ़तापूर्ण बातों का उत्तर समय समय पर आप को देने पड़ते है । उन्ही संदर्भों के लिए कई दिन से मैं गांधी जी के जीवन पर आधारित एक महत्वपूर्ण पुस्तक " दक्षिण अफ़्रीका के सत्याग्रह का इतिहास द्वारा गांधी जी " पढ़ रहा था जो अभी आज समाप्त हुआ है । मुझे लगा कि ऐसे महान व्यक्ति के जीवन संघर्ष पर आधारित इस पुस्तक की मूलभावना आप लोगों तक पहुँचाया जाय । यह ग्रंथ 400 पन्नों का है लेकिन इसमें कही और व्यक्त की गई एक एक लाइन संघर्ष और अनुभव का वेदवाक्य है ।
पुस्तक में बहुत सहजता से ये बताने का प्रयास किया गया है कि दक्षिण अफ़्रीका (नेटाल ) में अंग्रेज़ और भारतीय कैसे पहुँचे । आप की रोचकता तब और बढ़ जाती है जब 16 November 1860 को हिंदुस्तानी मज़दूरों का पहला जहाज़ नेटाल पहुँचता है । क्या सपने है , क्या हश्र हुआ , कैसे गांधी जी अपनी लड़ाई और सत्याग्रह का प्रारम्भ किए । सब कुछ इस ग्रंथ में सहजता से गांधी जी के शब्दों में समझ सकते है । इसी दक्षिण अफ़्रीका के प्रवास ने गांधी जी को एक प्रयोगशाला दी । जिस प्रयोगशाला में अपने संघर्ष और सत्याग्रह को ऐसा महामंत्र बनाया की जब एक बार गांधी जी भारतीय राजनीति में प्रवेश करते है तो आज़ादी के अंतिम सोपान तक अपने संकल्प पर क़ायम रहते है । अंग्रेज़ बहुत ताक़तवर थे लेकिन गांधी का संकल्प उनसे बहुत आगे था ।
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