रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड 1919
रौलेट एक्ट क्या है और सरकार ने क्यों लाया था
गरीबी बीमारी नौकरशाही के दमन चक्र और युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ति में सरकार द्वारा प्रयुक्त कठोरता के कारण भारतीय जनता में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध पनप रहें असन्तोष ने उग्रवादी क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज कर दिया।
बढ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए सरकार ने 1917 में न्यायधीश सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी ने दो विधेयक तैयार किये।
![]() |
image source-Google| image by https://www.opennaukri.com/Addhttps://www.opennaukri.com/ caption |
इसी को रौलेट एक्ट या रौलेट बिल नाम दिया गया था। इसी के अर्न्तगत एक ऐसा एक्ट भी पारित किया गया जिसमें भारत के किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए संदेह के आधार पर कभी भी जब चाहे बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रख सकती थी, इसीलिए इस कानून को बिना वकील बिना अपील बिना दलील का कानून कहा गया।
इसलिए इसे नो वकील, नो दलील, नो अपील कानून भी कहा गया था। रौलेट एक्ट को भारतीय जनता ने काला कानून कहकर आलोचना की। गांधी जी ने रौलेट एक्ट की आलोचना करते हुए इसके विरुद्ध सत्याग्रह करने के लिए सत्याग्रह सभा की स्थापना की । फरवरी 1919 में गांधी जी ने एक सत्याग्रह सभा बनायी जिसके सदस्यों से इस कानून का पालन नहीं करने और गिरफतारी देने के लिए कहॉ गया। इस सत्याग्रही सभा में अधिकांस नौजवान होमरुल लीग आंदोलन के थे।
30 मार्च को दिल्ली मे हडताल का आयोजन किया गया। दिल्ली में स्वामी श्रद्धानन्द ने इस आन्दोंलन का नेतृत्व किया था।
जलियांवाला बागा हत्याकाण्ड 1919
13 April 1919 में बैशाखी का दिन था। पंजाब के अमृतसर के जलियावाला बाग में एक भारी भीड दो गिरफतार नेता डॉ0 किचलू और डॉ0 सत्यपाल कि गिरफतारी के विरोध में इकठ्ठा हुई।
![]() |
image source- google | image by-The Rowlatt Act Newshttps://www.india.com/ |
सेना के फौजी कमाण्डर जनरल डायर ने इस निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। जनरल डायर को इस भीड़ पर गोली चलाने के लिए उकसाने वाला भारतीय हंसराज था। इस काण्ड में मरने वालों की संख्या सरकारी आकडे़ के अनुसार 378 थी जबकि वास्तव में मरने वालों की संख्या 1000 के ज्यादा थी। पंजाब में मार्सल लॉ लागू कर दिया गया पंजाब का लेफट गर्वनर माइकल ओ डायर था। सरकार पर दबाव पड़ने के कारण इस घटना के जॉच के लिए हन्टर आयोग का गठन किया गया। कांग्रेस ने भी इस घटना के लिए एक जॉच आयोग का गठन किया था। जिसमें मोती लाल नेहरु और गॉधीजी थे और इस जॉच के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय थे।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसी घटना के कारण अपनी नाइट हुड की उपाधि वापस कर दी। शंकरन नामक भारतीय ने वायसराय की कार्यकारणी से इस्थीफा दे दिया। शिवस्वामी नामक एक वकील जो उदारवादी था। उसने ही विस्तार से इस घटना का वर्णन किया।
1 टिप्पणियां
Ye ek acha andolan tha
जवाब देंहटाएं